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गोरा बादल कवित्त ]
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कुडलीउ ॥ दल सझवे सुरताण, आय चित्रकोट विलिज्जइ, भेजउ वेगि विसेट, वात मिलणे की कीनइ । दीजइ कर की वाच, जेम 'गहिलोत' पतीजइ, हम तम विचई खुदाइ हइ, लेइ मुसाफ आदइ धरउ, चितोड देखि वेगई फिरउं, वाचा देइ थायउ खरउ ॥४४||
वेग विसेट चलाइयउ, पुतउ गढह मझार । सभा सहित राय भेटीयउ, बोलइ वयण विचार ||४||
करित ।। वात करी तव मिठ, राय तस वयण पतिनउ, जिण परि कही विसेट, सोइ परि राजा किन्हउ । राजकुली छत्रीस, सहूति सभा भणिजइ, असपति आवणु काउ, कहु किणपरि बुधि कीजइ । मिली प्रधान इम चीतवइ, सेन सहु दुरिहिं पुलइ, जण वीस सहित आवइ ईहा, तु पतिसाह राणा मिलइ ॥४६॥ विधी पोलि चिटकाइ, डस्या गढ तुरक नभाया, गोरी गोधउ मड, साथि लमकरह सवाया । अब तु मेलु भयो, राय जिमणार कराया, त्रीस सहस मेली गया, साथ लसकरह सवाया। खाणाज खाइ जव उठीया, पकड़ि वाह राजा लीया, वात ज करत लंघीय पोली, तब रतनसेन काठा कीया ॥४७॥