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________________ ११८] [गोरा बादल कवित्त उचरइ विन एरिस वयण, लोग विहि जीता तिरी, इसी नही रविचक्र तलि, मई नव खड देख्या फिरी॥४०॥ लाख तूल पल्लिंग सउडि पिणि लख मिलइ तस, अतह पुड सइ पंच, अवर गिदूया सहस जस । तसु ऊपरि ओछाड, रंग बहु मूलई लीधा, अगर कपूर कुमकुमा, कुसम चंदन पुट दीधा । अलावदीन सुरताण सुणि, चेतन मुख सचउ चवड, पदमिणी नारि सिणगार करि, राय रत्नसेन सेजइ रमइ ।।४।। पलाण्यड अलावदीन, जल थल अकुलाणा, राय राणा खलभल्या, पड्या दह दिसि मंगाणा। हय गय रथ पायक, सेन काई अंत न पावइ, जे मोटा गढपती, तेह पणि सेवा आवइ । तब कोप करवि वल मॅछ धरि, कहइ साह विग्रह करउ , मारउ देस हीदुआण कु, त्रीया एक जीवत धरउ ।।४२|| वकर गढ चित्रकोट, सकति सुरताण न लिज्जइ, ऊठि आई मुसाफ, वोल जस राय पतिज्जइ । डड डोर नवि दिउ, देस पुर गाम न गाहूँ, नाही गढ सु काज, राजकुअरी न व्याहु । राघव कहइ असपति सुणि, कहि राजा मारिन आहुड, रत्नसेन मुझकु मिलइ, तउ नाक नमिणि करि वाहुडउ ।।४।।
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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