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गोरा बादल कवित्त ]
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पातिसाह राघव, आय ऊभा तटि साइर, करउ मंत्र चेतन्न, कटक लंघीइ रिणायर। सुणि आलम वीनती, नीर कउ अंत न जाणत, संघलदीप पदमिनी, घरहि घर अधिक वखाणउं । भंनउ सु कोट असपति कहइ, देखि दाउ तिसकुं दिउ, ग्रहे खग्ग सीस राजा हणउ, पकडि प्राह पदमिणि लिउ ॥३१॥ हठि चड्यउ सुरताण, खणवि धरणि तलि पिल्लउं, वेगि ल्यावि पटमिणी, सेन सवि साइर घल्लउँ । मिलि वइठा मंत्रवी, कहा हम पदमिणी पावइ, वे बंभण तूं कूड, झूठ वातई इहा ल्यावइ । राघव कहइ तुम्ह मति डरउ, हुं करउं मत्र मनि भाईयउ, सुलताण ताम समझाइ करि, वाहुडि डिल्ली लाईयउ ॥३५।। सलहिदार हथियार, लेइ आगइ अवधारीय, सभाले सवि सेल, माहि भेजे चिति धारीय । बीवी तव पूछीयउ, साह पदमिणि किहीं आणी, च्यारि त्रीया घरि नही, किसी तिस की सुरताणी। खुणसि भई सुरताण मनि, तव अदेसा किधा वहु, सचल दल जे पठया हई, वे राघव पद्मिणि कहु ॥३६ ।। तव राघव चिंतवइ, वयर पाछिलउ संभावउ, कहुँ जिहा पदामिनी, साह जु चिंतइ धारउ । गढ चितोड हिंदुआण, राण गहिलोत भणिज्जइ, रत्नसेन घरि नारि, नारि सिंघली सुणिज्जइ।