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________________ ११६ ] [ गोरा वादल कवित्त सजे सिंणगार सवि कामिनी, भूयण मिरि छज्जइ ठढी, के स्यामा के गोर, केह गुण गाहा पढी। निरखंति वयण भुव मज्झि नव, एह वात चित्तह गुणी, दोइ जाति नारि ढीसइ घणी, सु नही साह घरि पदमिनी ॥३३॥ रोस भयु सुरताण, खान अर पान न भावइ, बे ला इत मारि लवार, वेग पदमिणी दिखलावहि । ले किताव कर धारि, करइ वंदिन वीनत्तीय, सघलडीप समुद्र, अछइ पदमिण वहु भत्तीय । हुसीयार होइ अरदास करि, एक अधू पेखइ जिहा, संभली समुद्र ससइ पड्यउ, कोइ खुदीय खुते तिहा ॥३४॥ असपति कीयउ आरम्भ सु दिन साधीयउ दखिण धर, पातिसाह कोपीयउ, कुंण छुट्टइ संघल नर। दल गोरी पतिसाह, जुडइ सग्राम सुहुड भड़, नव लख त्रिगुण तुरंग, चउद सहस मइंगल घड । सूर्ज खेह लोपति गयउ, पातालई वासग दुड्यउ, चिहु चक्करायसासइ पड्या, पातिसाह किसपरि चड्यउ ॥३॥ चड्यउ चंचल सुरताण, खेडि दख्यण तटि आयउ, सेन सहू उत्तरी, तिवही वंभण बोलायउ । चेतकरी चेतन्न, एम जंपइ खूढालम, मई कताव तोही दीयउ, भयु सु दुनीयां मालम । असपति कहइ चेतन सुनि, अव वेगइ संघल संचरउ, जिसी भांति पदमिनी कर चढइ, सोइज मित्र चित्तह धरउ ॥३६।।
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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