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गोरा वादल कवित्त ]
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दूहा राघव वयण इम ऊचरइ, साभल साह नरेस । त्रीया लखणे बूझीयइ, कोक तणइ उपदेस ॥२८॥
सलोक पद्मिनो पद्म गधाच, अगर राधाच चित्रणी । हस्तिनी मद्य गंधाच, खार गधाच मंखिनी ॥२९॥ पद्मिनी पुष्फ राचंति, वस्त्र राचति चित्रणी। हस्तिनी प्रेम राचति. कलह राचति सखिनी ॥२०॥
कवित्त गहिर महिर अलावदीन, राघव हकारीय, नयण नारि निरखेवि, देखीइ हरम हमारीय । हसगमण गजचलणि, साहिजादी अतुरत्ती, सुरत्ति सुर नर, स्त्रीया पेखि हस्तीनी, चित्रणी क संखिनी क, किती साह घरि पदमिनी ||३१|| साह आलिम एक बयण, विप्र उच्चरइ सुमिट्ठङ, लोयण ते हेतम कीय, जेणि परिरमणि मुह दिउ कहइ एम सुरताण, कहु कइसी परि किज्जड, काच कुंभ भरि तेल, मुहुल माही रास रचिज्जइ । इक संग रग ठाढी रहइ, सजे सिणगार सवि कामिनी, प्रतिविंव निरखि राघव कहइ, सो कहुं साह घरि पदमिनी॥३२॥ पातिसाह राघव, आय तिण ठामि बइठा, काच कुंभ ढालेइ, भरीय जस तेल गरिठा ।