________________
१०२ ]
[ पद्मिनी चरित्र चौपई इन्द्र चद्र नागेन्द्र सब, जस से सुर नर गय । तिण रावण राज गमाडीयो, नारी तणं पसाय ॥२॥ वेटा काहे कुफिरो, करते आप कलेस । बैठा जोख कहो इहा, दिल्ली गढ निज देश || हिव वाढल की वारता, सुणयो देई कान । पातिसाह न्हाठा' पठे, रिण सोध्यो बादल जाण ॥४|| जग मे जस पसत्यो घणो, खायो बड़ो विरुद। गढनी पोलि उघाडीया, लोक कहै जसवट ||५||
डाल (३३) करडो तिहा कोटवाल एदेशी राग-~-खमाइती जाति सोलाकी या मारू रावल रतन सुजाण, सनमुख आए सामेलो करे । सिणगारवा वाजार, हय गय रथ पालखीया बहु परेजी ||१|| मिलया श्री महाराज, वादल सती नेह घणे करी जी। ले आया गढ माहि, बैसाणी गज छत्र सिरइ धरी जी ॥२॥ देई देश भंडार, वादल नइ कीघो अधराजीयो जी। तैं राखी गढनी लाज, आज पर्छ ए जीव तुमे दीयो जी ॥३॥ तुजीवे कोड़ि वरीस, धनमाता जिण तुगरमें धत्यो जी। चै पदमणी आसीस, ते उपगार अम' थी बहु कस्यो जी ॥४॥ मस्तक तिलक वणाय, भरि भरि थाल वधावै मोतिया जी। निज बंधव करि थाप, पहुंचावै निज घरि उछव किया जी ॥५॥
१ चाल्या २ सह ३ वड़ो अमने ।