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__ पद्मिनी चरित्र चौपई ]
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आवंतां निज गेह, चउहटइ च्यारों दिश नारी मिली जी। " . बोलइ कीरति बाल, मोतिया वधावै गावइ मन रली जी ॥६॥ इम आयो निज गेह, सयण सबंधी परजन सहु मिली जी। प्रणमै जननी पाय, माताजी आसीस दीडं भली जी ॥७॥ सझि करि सोल शृंगार, अधर विव' निज नारिया जी। आवी आणंद पूर, धवल मंगल करती सुखकारीया जी ||८|| हिवें गोरिल की नार, पूछ तुम काको रिण किम रह्यो जी। कहो किम वाह्या हाथ, किम अरियण मास्या किम जस लडोजी कहै वादल सुणो वात, केहो वखाण करा काका तणो जी। ढाह्या गैंवर घाट, मुगला सुभटां संहार कीयो घणो जी ॥१०॥ राख्यो आलिम एक, तुरका सकल सेन मारी करी जी। तिल तिल हूओ तन, हुओ पाहुणो अमरापुर वरी जी ॥११॥ राखी गढ री लाज, उजवाल्यो कुल गोरेजी आपणो जी। इम सुणी गोरिल नारि, रोम रोम जाग्यो तन सूरापणो जी।१२ विकसित वदन सनेह, भाखै सुणि बेटा रिण वादला जी। वहैलो वारि म लाय, दोहरा बैठा ठाकुर एकला जी ।।१३।। विच छेटी वहु थाय, रीस करेसी अमने श्री राय जी । काकी ठाम लगाय, ढील कीया हिवमइ न खमाय जी ॥१४॥ सुणि कहै वादल वात, धन धन माताजी ताहरो हीयो जी। सतवंती तूंसाच, धन तें आपो आप सूधारीयो जी ॥१।।
१ आमोषउ ले २ खरी ३ गोरिल ।