________________
१८ ]
[पद्मिनी चरित्र चौपई
विहूवाथ घाल घाव घाले डला होवें दोय । सनाह तूटै रगत फूटै पुरज पूरजा होय ॥८॥ गोवा चुचईधारा वहै सारा माचीयो झड झझ। छिन छिन्न धाए लोह लागा रह्या माहि अलूम ||गो॥ वड बड़ा सामंत योध जालिम भिड़ें' वादो वाद । अति अधिक सूरातन वसं आवै न खेड़ा आदि ॥१०॥गो०॥ गुड गुडंत गुहीर नीसाण गाजै देखि लाजै मेह । घाव पड़े तिण घाव नाचे धाम धूमी देह ॥१शागो०॥ रिण चाचरै रजपूत कूदें करै हाको हाक कूट कुटे कीया कण कण मुगल आया नाक ॥१२||गो०॥ आलिम अरेरे अकलहीणा अंध साचा ढोर । इम कही खड़ खड खड़ग वाहे तडातड़ि रिण घोर ॥१३॥गो॥ हुसीयार हुओ हथीयार वाहो रही दिल्ली दूरि। किहां अकलि हीणा एह वभणा अकलि दीधी कूर ॥१४॥गो॥ गृह मात तात अर भ्रात बंधव नेह नाण्यो कोइ । चितारीया नहिं माल मिलकत सुक्ख नारी कोय ।।१५।।गो०॥ होइ लोह गोला मुगल दोला जोर जुड़ीया जंग । हैवरा गलि गज गाह वधै रह्या विडद अभंग ॥१६॥गोगा वाजीया सिंधु राग वारू भलो मारू भेद। जिहा भाट चारण डु व वोलइ विड़द मनह उमेद ॥१७||गोगा
१ पिढइ, २ आण्या, ३ बुद्धि ४ वह्या ।