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पद्मिनी चरित्र चौपई ]
दूहा ऊभी जय जय ऊचरै, ले वरमाला हाथ । अपछर आरतीया करै, घालै सूरा वाथ ॥१॥ डिम डिम डमरू वाजता, साथे भूत बहु प्रेत । रुड (तणी) माला संकर रच, सिलो कर रिणखेत ॥२॥ जासक पीवें योगणी, भरि भरि पात्र रगत । डडकारा डाकणि करै, जिण दीठइ डरै जगत ॥३॥ ढाल (२१) कडखा री-गच्छपति गायइ हो जुगप्रधान जिनचद जूझ महाभिड़ मुगल हिन्दू सबल सेन सनूर । तिण माहि मामि आइ जुडीया नाखि फोजा दूरि ॥१॥ गोरिल्ल गाजियो रे अरि गजा भाजन सिंह।। वादल वाचिउ हो भारत (में) भीम अवीह ॥२॥गो०॥ आलिमपति अलावदीनह मुगल्ल मीर मसन्त । रावत गोरिल्ल वीर वादल जानि मैगल मत्त ॥३॥गो॥ धूजियो धड़ हड़ मेरु पर्वत चढी धरणी चक्र । जम वरुण जालिम डस्या दिगपति संकीया मन सक्र ॥४॥गो॥ है कंप हुआ नाग वासिक ईश ब्रह्मा रूप। मुख करै ऊंचो वेलि रै मिस देखि डरइ अकूप गो॥ वाहइ जलोह छछोह हाथे करई कंध कड़क घण घणा हाथै हण्या घण घण पड़े योध पड़क' ॥णागो॥
१दड़क ।