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[पद्मिनी चरित्र चौपई
दूहा मन माहि सके सुभट, पदमणि दीधी राय । जो छूटे नहिं तो रखे, दोन्यु स्वारथ जाय ॥१॥ तिण हेते लसकर तुमे, विदा करावो साहि । सहस पंच' राखो नखें जो डर आणो मन माहि । इस सुनि कहइ उच्छक थको, काम गहेलो साह । कहो कुण थे हम डरई, हम सू जगत डराय ||३|| चतुर किहा तू चातर्यो, वक जु अइसी वात । हम सुडरै जो सुर असुर, मानव केही मात ॥४॥ कूच तणो कीधो तुरत, आलिम साहि हुकम । लशकर के लोध्या' घणो, पाम्यो सुख परम ॥५॥ सहस च्यार साऊ सुभट, रहो हमारे पास । अवर कटक सव ऊपडो, ज्यु हिन्दु हुवे वीसास । सहस च्यार पासे रह्या, अउर चल्या ततकाल । कहै साहि कीधो कीयो, अब बादल कओल सुपाल| ढाल (१८) वलध भला छे सोरठा रे-एदेशी लाख सोनइया रोकडारे लाल, सखर देई सिर पावरे सरागी। वादल ने आलिम कहे रे वेगउ पदमिणी ल्याव रे स०१ बुद्धि भली बादल तणी रे लाल, देखी खेलइ दाव रे स० । ले लखमी घर आवियो रे लाल, माता हरख अपार रे सरागी। वले संकेत वणाइयो रे लाल, सुभष्टा ने समझाय रे ॥२॥बुगा
१ चार २ सुभट ३ लोके सवइ ।