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पद्मिनी चरित्र चौपई ]
[८६ गढ थी माड सेना लगें जी, करयो हारा डोर । वार घणी विलंबयो जी, जतन करेयो जोर वाकु०॥ पातिसाह पासें जाईइंजी, हुं करस्यु जे वात । रावल जी छोडायस्यां जी, पाछे करेस्या घात ॥णाकु०॥ भलो भलो सुभटे कह्यो जी, थाप्यो एहज थाप । इम आलोच आलोचता जी, प्रात हुओ गत पाप ॥८॥कु०॥ सुभट सहु समझाय ने जी, चढीयो वादल वीर । तिम हिज पहुंतो लसकरे जी, धरतो तन मन धीर ||कु०॥ करी तसलीम ऊभो रह्यो जी, हरख्यो आलिम साहि । पूछे वात कहो किसी जी, काम कीयो के नाहि ॥१०||कु०॥ वहुत निवाज तुझ' कुकरजी, वादल वोल्यो साच । सिरे चढे कारिज सहू जी, साची वादल वाच ।।११||कु०॥ सुभटा ने समझाय ने जी, नाकै आई नीठ । पदमणी नी आणी अछै जी, पालखीया गढ पीठ ॥१२॥कु०॥ सुभट सहु मिलि विनती जी, कीधी छै सुणि सामि । जोख पदमणी री करो जी, तो राखो हम माम ॥१३॥कु०॥ पेस करा जो पदमणी जी, तुम' उपजै वीसास । विण वीसास किसी पर जी, कै सहु ने रंग रास ॥१४||कु०॥ कहि आलिम कैसी पर जी, तुम वीसासउ मन । 'लालचंद' कहै साभलो जी, वादल कहेज वचन ॥१५॥कु०॥
१ वदउ २ अविचल ३ जो ।