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[ पद्मिनी चरित्र चौपई
पदमणी पिण मन गहगही, ए मेलवसी भरतार । सुभट सहू मन संकीया, ऐ ऐ बुद्धि भंडार ॥२॥ सगत छिपाई नवि छिपइ, सहजइं प्रगटइ तेह । गांठड़ि इं जोइ वाधिइ, तउही अगनि दहेहि ॥३॥ जइ घट विधना गुण दीपइ, निदइ मनि मतिमन्द । जउ कुडे करि ढाकीयइ, तउ छिप्यो रहत कत चंद ॥४॥ एण समै आया तिहां, जिहा बैठा राय राण । मांड्यो एहवौ मंत्रणो, बादल बुद्धि प्रमाण ॥५॥
ढाल (१७)-साधजी भलें पधार्या आज ए-देशी सोवन कलश सुहामणाजी, करी जरी रमझोल। सहस दोय सावत करो जी, चित्र रचित चकडोल ॥१॥ कुमरजी मानो ए मुझ वात, जिम कारज आवइ धात ।कुआ० तिण माहि दोय दोय भला जी, जे सलह' पहरी जुवान । शस्त्र घणे करि सावता जी, वैसाणो बलवान ॥
२०॥ पदमणि री विच पालखी जी, सखर करें सिणगार। ढाको पदमिणी वस्त्र स्युजी, भमर करइ गुजार ॥३॥कु०॥ गोरो जी वैसाणयो जी, पदमणि जी रे ठाम । पालखीया सखीयांतणी जी, सुभट करो विश्राम ||४|कु०॥ लारो लार लगावयो जी, छेटि म राखो काय । केलवणी करयो इसी जी, जिम बाहिर न दीखाय ॥शाकु०॥
१ जोसण २ लखाय ।