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पद्मिनी चरित्र चौपई]
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अहि सम आलिम साहि, साहि न सकतो को सही जी। पदमणि मंत्र चलाइ, वादल गारूड़ वसि कीयोजी ॥६॥ पाहुणउ तू हम आज, कहुँ ते महिमानी करा जीवा सगली तुम्ह नई लाज, वादल राज हमा तणी जी ॥वा॥१०॥ सुभटां सहु समझाय, साहि कहै वादल सुणो जी। सगली' तुम ने लाज, थापयो एहिज मतो जी ॥११॥ करतां तुम उपाय, जो किम ही करि पदमणी जी । हाथ चढं हम आय, तो देखे कसी करु जी ॥१२॥ इम कहि हय गय सार, लाख सोनइया रोकड़ा जी। वारु वले२ सिरपाव, वकस कीया वादल भणी जी ॥१३।। रुको द्यु तुम हाथ, प्रीत वचन माहि लिखं जी। जाइ पढ़ें पर हाथ, आलिम इम वचने नहीं जी ॥१४॥ तुम विरह की वात, वचने करि कहिस्यु घणी जी। चिठी आव न घात, कोई जाणे भाजै मतो जी ॥१।। महिर करी हिव मोहि, वीदा करो वेघो घणो जी। आलिम साथे होय, पोलि लगे पहुंचावीयो जी ॥१६।। धन लेड आयो देखि, हरख्यो माता नो हीयो जी। वंछित फल विशेप, “लालचंद" धरमे सहीजी ॥१७॥
खुशी हुई नारी खरी, धन दिवस निज जाणि । गोरोजी मन हरखीयो, करसी काम प्रमाण ॥१॥ ___ १ दूध न डांग दिखाय, २ वस्त्र अपार ३ इलम वच नहीं जी ४ पहुँतो कीयो जी, ५ गोरोपिण मन गरजीयो।