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________________ [पद्मिनी चरित्र चौपई वीरभाण राजा सहित, सुभटा ने समझाय । ज्युज्युकान ढेराई नै, हुं आयो तुम पाय ॥८॥ राणी मूंक्यो मो भणी, घणी वीनती कीध । हिव हुं जाणु तुम तणी, होसी मनोरथ सिद्धि ॥॥ ढाल (१६)-वदणा कर वारवार-ए-देशी-प्राहुणारी वालेसर हो वली परभातें बात, कहस्यु आइ होसी जीसीजी।। दिलीसर हो वाची चीठी बात, सीख करां जावा घरे जी ॥१॥ जोती होसी वाट, विरह व्यथा पीडी थकी जी दिन जाय टालुउचाप्ट, तुम सदेश सूधा करी जी ॥२॥ इण परि साभली वोल, पदमणि प्रेमइ वाधियो जी। आलिम मन झकझोल, कीधो वादल वाय करजी ॥३॥ मूंकै मुख नीसास, चीठी वाचै चूपस्यु' जी। आलिम मन मृगपाश, पदमणि कागद पाठइयो जी ॥४॥ नयणा रे नीर प्रवाह, विरह अगनि व्यापी घणी जीवा ए अचिरज मन माहि, भभकइ अधिकी भीजता जी ॥वा०॥५॥ हृदय समुद्र अथाह, माही विरहानल दहइ जी ।व।। नयन वीजलि रइ नाह, बूठइ न्याय न त्रीसमइ जीवाला घल घट हलीयो रे जाय, प्रेम सुणी पदमणि तणउ जी ।वा० मुख सुकागल लाय, वार वार चुम्बन करइ जी ॥वा०॥७॥ खूब लिख्या इण माहि, संदेशा साचा सहु जी। दिलीसर हो उठे कराहि, काम तणे बाणै हण्यो जी ॥८॥ १ प्रीत तूं।
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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