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________________ पद्मिनी चरित्र चौपई ] [ ८५ मुख करि किम कहतइ वणे, जे तुम्ह सेती राग। ते मन जाणे तेहनो, लागो जिण विधि लाग रे ॥१४॥सु०॥ विगति लहै विरहा तणी, विरही माणस तेह । 'लालचन्द' कहइ मोवतइ, कहियइ न जावइ तेह रे ॥१शासु०॥ दूहा चीठी दीधी चूपस्युं, वाची देखें साहि । समाचार विगते सहित, सगला ही इण माहि ।। १ ।। वइत हजार दरवदिल मेर सजिइरिया रु चिहुँ नमसु वुइ कुनम् आदिल केवद रद हजार ॥१॥ तन रार वाव साजिम् रंग हाजितार तार दीगर, सरोजर्ने स्तेव जुज वार योर यार ॥२॥ मइ मन दीनो तोहि, जा दिन तो दरसन भयो। अव एती वीनति मोहि, प्रेम लाज तुम निरवहाँ ।।२।। मइ मन दीनो तोहि, सकइ तो ऊडि निवाहीयं । नातरि कहोइ मोहि, हुँ मनि वरज आपणउ ।।३।। निसि वासर आठ पहर, छिण नहिं विसरु तोहि । जिहि जिहि नइन पसारहुँ, तिहि तिहि देखं तोहि ।।४।। आठ पहोर चोसठि घडी, जवही न देखु तुम । न जाणु तइं क्या कीया, प्राणपीयारे मुझ ।।।। दोवैता दूहा सहित, चीठी एक उपाय । वादल दीधी साहिने, अकलि थकी उपजाय ॥६॥ बले कहै आलिम तणा, यदि आया परधान । सुभटा मरणो आगम्यो, पिण न तजे अभिमान ॥णा
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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