________________
पद्मिनी चरित्र चौपई ]
[८३ वुद्धिवंत बादल राइ ने, पूछ श्री पतिसाहि रे भाई। सलाम करी बैठो तिसै, आलिम हूओ उच्छाहि रे भाई।१७आ० 'लालचन्द' कहै वुधि थकी, दोहग दूर पुलाइ रे भाई ।११आ०।
दूहा नाम तुमारा क्या कहो, किसका है तू पूत । क्या महीना रोजगार क्या, किसका है रजपूत ॥१॥ किण भेज्या किण काम कं, आया है हम पास । तव वलतो बादल कहै, वुद्धिवंत हीइं' विमास ॥२॥ बोली जाणइ अवसरइ, माणस कहीइ तेह । बादल इण परि वोलीयउ, जिम वधीयो आलम नेह ।।३।। वल थी बुध अधिकी कही, जउ ऊपजइ ततकाल । वानर वाघ विणासियो, एकलड़इ सीयाल ॥४॥ नाम ठाम कहि वीन- सुभट चढ्या अभिमान । तिण मुंकियो छानों मनै', पदमणीयें परधान ॥॥
ढाल (१५)-सइमुख हुन सकुँ कही आडी आवै लाज जिण दिन थी तुम देखीया जिमवा मउसरि साह । तिण दिन थी पदमिणि मन सिउ तुम्ह मांहो रे ॥१॥ सुण आलिम धणी। विरह विथा न खमायो रे, वात किसी घणी |आकणी।। ते धनि नारी नारी जाणीइंजेहनिइ ए भरतार। इण थी रूप अवधि अछ, काम तणो अवतारो रे ॥२॥सु०
१ मनइ २ पदमनी।
-
-