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[पद्मिनी चरित्र चौपई. सगते सु भट संग्राम करै मन गहगही।
पिण नवि मूक माण वात में संग्रही ॥३३॥ मान विना नर कण विण कुकस जेहवो।
'लालचंद' नर टेक न' छंडै तेहवो ॥३४॥
कवित्त
अगीकृत अनुसरइ होइ सापुरिस जु साचा, अंगीकृत अनुसरइ होइ कुल जातै जाचा । अंगीकृत ईश्वरइ जहर पीधउ दुख हंतइ , वारिध वाड़व अग्गि वहे पाणी सोसंतइ । काछिवउ कंध बहु धावही, अजहु भार एवड़ सहइ । मुनि लाल वयण आदरि जके, सो सज्जन वहु जस लहइ ॥१॥
दूहा काया माया कारमी, जात न लागई वार । सूरपणे कायरपणे, मरणो छै एक वार ॥१॥ तउ ढाढा हुइ किम मरौ, मरउ तउ मरण समारि पत जास्यै पदमणि दीया, अमचउ एह विचारि ॥२॥ राय लीइ राणी दीइं, जाण्या यदि जूझार । मस्तक केस न को रहइ, अपकीरति संसार ॥३।। नाक मु किजो ऊबरया, केहो जीवन स्वाद । देश विदेश छाडो पडो, तजीइ किम कुल मरजाद ॥४॥
१ वात निवाइइ २ कोई मरण न टालणहार ३ छाँटो मरु इम रहइ