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[ पद्मिनी चरित्र चौपई
पहिली मति ॐधी करी, आलम तेड्यो माहि रे भाई। तेड्यो तो मारण तणो, कीधउ दाव सु नाहि रे भाई आo) जहर कहर मुगल मिल्या, गढ मे तीस हजार रे भाई। छल वल करि नवि छेतत्या, तौ स्यो सोच हिवार रे भाई ॥१०॥ लसकर माहि जाइ न, ले आव छुवात रे भाई। इम कहि नै अश्वं चन्यो, साहस एक संघात रे भाई ॥१||आoll ऊतरीयो गढ पोलि थी, निलवट निपट सनूर रे भाई। अॅगै आऊध अति भला, प्रतपै तेज पडूर रे भाई ॥१२||आ०|| एकलमल अश्वे चढ्यो, अभिनव इन्द्र कुमार रे भाई। आलिम देखी आवतो, पूछायो तिण वार रे भाई ॥१३॥आ०||
सीह न जोवइ चंदवल न जोवइ घर रिद्धि ।
एकलड़उ बहुआ भिड़ा ज्या साहस त्या सिद्धि ॥ पूछ्या थी वादल कहै, मेलि करण रै मेलि रे भाई । जाइ कहउ हुँ आवियउ, पदमिणि तुम नइ गेलि रे भाई।१४।आ० तुम उपगार करु वड़ो, माने जो मुझ बात रे भाई। सेवक आवी इम कहै, हरख्यो आलिम गात रे भाई ॥१॥आ। तेडायो आदरि करी, दीठो अति बलवत रे भाई। बैसाण्यो दे वैसणो, मान लहै गुणवंत रे भाई ॥१|आ०|
हसा जहाँ जहाँ जात है, तहाँ तहाँ मान लहत । कग्गा बग्ग कग्ग वग, कग वग कहा लहंत ॥
१ अग्नि ।