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[पद्मिनी चरित्र चौपई
तिम करयो जिम हुं मन मांहिं गहगहूँ ।
छल बल करयो काम घणो कासु कहूँ ।।१३।। जीवन मरणे साथ तुमारो मई कियो।
हिव करयो हथवाह करी करडो हीयो ।।१४।। भूखा घर नी नार पूछी' कुमतो कहै ।
तिण सगले संसारि वहुत अपजस लहै ।।१५।। उत्तम राजकुमार सदा सुमतउ दियइ
धीरज कुलवट रीति रहइ जग जस थियइ ॥१६॥ हिव साची मुझ नार जिणं सुमतो कहयो।
निज कुल राखण रीत हिवै मन गहगहयो ।।१६।। सुभट तणो सिणगार करायो नारी।
बंधाया हथियार भला निज करि लीई ।।१७।। निज माता रा चरण नमी चित हरखीयो।
होय घोड़े असवार गौरिल घर सरकीयो ॥१८॥ करी जुहार कहि राज रहो ता लगै घरै।
जाय आउं एक वार कटक पतिसाह रे ॥१६ कहै गोरो मुझ वात सुणो तुम वादला।
तुम जाओ मुझ छाड रदै किम मुझ कला ||२१|| काकाजी मन माहि न तुम चिंता करो।
रिणवट एको साथ हुसी आपा खरो ॥२२॥
१ पूठी कुमतइ २ सजाओ।