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पद्मिनी चरित्र चौपई ]
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तो दस मास न झाल्यो भार मुझ मात जी।
ते भाखीज्ये वात करुतिण मे कजी ॥३॥ सूरातन मन देखी नारी तव इम कहै।
__ भलो भलो भरतार सुमन मे गह गहै ॥४॥ हम है तुमारी दास कि पग की पानही।
निरवाईजो वात जेती मुख स्यु कही ।।शा मति किणही वातइ ढहि जाहु कि लाजवउ ।
वंश बधानउ शोभ विरुद वहु छाजवउ ।।६।। घालैयो ने घाव घणो साहस करी।।
खेसवयों रिण खेत खडग हणी लसकरी ॥णा होय छछोहा लोह घणा थे वावयो। __
हल करयो हथवाह अरी दुल गाहयो॥८॥ यो मति पाछा पाव मरण भय' मति गणो।
जीवण थी इणि वात सुजस काइ द्यो घणो ।।६।। भिड़ता भाजै जेह मरै निहचै करी।
कानि सुणउं एहवात मरुलाजइ खरी ॥१०॥ सुभटा माहिं सोभ घणी थे खाटयो ।
नव खंडे करी नाम अरी दल दाटयो ।।११।। सुभट कहावै नाम सहू ही सारिखो।
पण रिण माहि तास लहिज्य पारखो ॥१२॥
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