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[ पद्मिनी चरित्र चौपई
मुगल महाभड़ साहसी, मकै दोय दोय वाणो रे। 'लालचंद' पतिसाह स्यु, पूजे केहो किम पाणो रे ॥१७॥वा०
दूहा शस्त्र ग्रही मोटा सुभट, दय चौकी दिशि च्यार । साहि सबल पति एकलो, भलो न एह विचार ॥१॥ तव वादल हसि ने कह्यो, कही किसी थे वात । रावल छोडावू रतन, तो गाजन मुझ तात ॥२॥ हुं गंजु हय गय सुभट, भाजि करु भकभूर । सतावीस लख दल सहित, साहि करूंचकचूर ॥३॥ नारि कहै' रहो रावलो, किसो जणावो पाण । अजीस नारी आपणी, साधि न हुवे सुजाण ॥४॥ नारी सुन्हाठा फिरो, मिटी न बाली लाज । तो कहो कसी परि जूझस्यो, करस्यौ केहो काज ॥५॥
दृढ़प्रतिज्ञ वीर बादल को स्त्री द्वारा सीख
ढाल (१३) नदी यनुना के तोर उडै दो पखोया --ए देशीतउ वलतो बादल कहै सुण कामनी।
तिण दिन आवीस सेज तुमारे जामनी ॥१॥ जीपी आउं जिण दिन वैरी हुँ एतला ।
छोडावू श्री राण कि लोह' करी के भला ॥२॥
१ कहर हुवी वड़ी २ सीधी नहीं ३ ला करि भलि मला।