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पद्मिनी चरित्र चौपई]
[७५ वादल की पत्नी का प्रयास बहुआ नै आइ कहै, माहरो वचन ज मानो रे। थे समझावो जाय ने, जो क्युही नेह पीछाणी रे ॥८॥वा०॥ सोल शृंगार समि करी, सुकलीणी सुविलासो रे। जाणे झत्रकी वीजली, आवी प्रीउ नै पासो रे हावा॥ रूपह रंभा सारिखी, मृगनयणी गज गेलि रे। कंचनवरणी कामिनी, साची मोहन वेलि रे ॥१०॥वागा विनय वचन करि वीनवइ, हसत वदन हितकारो रे । साहिव वीनति सांभलो, तन मन प्राण आधारो रे ॥१२॥वा साथ सबल पतिसाह नो, मुगल महा दुरदंतो रे । एकाकी इण परि कहो, किम पूजीजे' कंतो रे ॥१२शावागा कहें वादल सुण कामनी, जोइ करूँ जे जंगो रे। वन घणो नानो हुवई, तोडै गिरि उत्तंगो रे ॥१३॥वा०॥ वात करंतां सोहिली, पिण दोहली रिण वेला रे। सामी एहवइ मंत्रणइ, काय करो जन हेलां रे ॥१४॥वाणा सूर पणे वादल कहै, स्यानै भय देखावो रे। तेह नाहिं हुं वादलो, हिव द्यु हेठो दावो रे ॥१शावा॥ बोलई मोटा बोल, निश्चई निरवाहइ नहीं। तिण माणस रौ मोल, कोडी कापड़ियो कहइ ॥१॥ गोला नालि वहै घणा, हय गय रथ भड़ झूम रे । घोर अंधार रिण रजकरी, सूरिज सोइ न सूझ रे ॥१६॥वा!!
१ पहुंचीजइ।