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[ पद्मिनी चरित्र चौपई
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वीडो झाल्यो वादलई, आप भुजावल जोर रावत । मूकउ मनधरी खलभली, द्यो नोवति सिर ठउर रावत ||२|| सामिधरम सुपसाउलें, नई तुम्ह सत पसाय रावत।। परदल ने भाजी करी, ले आवो महाराय रावत ॥३॥वी०॥ जिण तुम सुइम दाखियो, जावो असुरा गेह रावत । जीभ जलो' तिण मनुष्य री, खत्रीवट न्हाखी खेह रावत ॥४॥ विरुद वखाणी पदमणी, सिर पर लूण उतारि रावत । सूर सुभट' सिर सेहरो, तू अमलीमाण संसारि रावत ॥५॥बी० गोरो जी सुणि वोलड़ा, मन तन हरखित दोय रावत । सुर होवे असुरा मिल्या, कायरे कायर होय रावत ॥६॥वी०|| मन नचिंत तुमे करो, महल पधारौ माय रावत । बादल बोल न पालटइ, जो कलि उथल थाय रावत ॥णाबी०॥ सूरिज ऊगै पच्छिमे, मूकै समुद मरयाद रावत । ध्रुव चले पिण न चलइ, सापुरिपा रा साद रावत ।
बादल की माता के मोह वचन महल पधार्या पदमिणि, तेहवै वादल माय रावत । सगली वात सुणी करी, पासै ऊभी आय रावत ।।६।।वी०॥ नैण झरै मन दुख करई, मुख सूकै नीसास रावत । विनो करी सुत वीन, किम दीसो मात उदास रावत ।।१०।। मो जीवंता मातजी, चिंता सी तुम चित्त रावत । काय तूं आमणदूमणी, कहो मुझ स्युथरी प्रीत रावत ।।११।।
१ बलो।