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पद्मिनी चरित्र चौपई ]
[७१ जैत थायज्यो रिपु जीपिनें रे, पूरो सुजन जगीस। वादल वीरा ए मुझ वीनती रे, जीवो कोड़ि वरीस ।।१३।।१०।। साहसि करता मन वंछित सरै रे, वरदायक सुर होय । ए काची काया थिर नवि रहै रे, जग में थिर जस सोय ॥१४॥ इम सती वचने प्रेरियो रे, मन थयो मेरु समान । लालचंद' कहै' चढती कला रे, सामीधर्म गुण जाण ॥१॥
बादल द्वारा राणाको मुक्त कराने की प्रतिज्ञा
सुणि वाता मन उल्लसी, बोलें वादल वीर । केहरि जिम बाडकि ने, अतुली बल रिणधीर ॥१॥ बाबा सुणि वादल कहें, सोई रहो सुभट । तो भत्रीज हुं ताहरो, खलां करुतिलवट्ट ।।२।। एकण पासे एकलो, एकणि साहि कटक । वावा तो हुँ बादलो, मारि करुं दहवट्ट ॥३॥ मात पधारो निज महल, पवित्र थयो मुझ गेह । चित में चिंता मती करो, जेर करू सव जेह ॥४॥ पाव धरूं पतिसाह ने, छोडावू श्री राजान' । जो वासे जगदीस छै, तो करस्युवचन प्रमाण ॥५॥
ढाल (११) मधुकर नो काम घणा श्री राम ना, कीधा श्री हणमंत रावत । तिमहं श्री रावल तणा, करस्यु काम अनंत रावत ।११
१ मुनिवर २ खलखट्ट ३ जोज्यो ४ राण ।