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[पद्मिनी चरित्र चौपई नहिंतर पाछे मन जाण्यो करूंरे, देखुछ तुम वाट । सील न खंडं जीभड़ी खंडस्युरे, कै नाखु सिर काट 1॥३॥पदा पच्छिम ऊगै रवि पूरव थकी रे, वारिधि चूकै ठीक । जलणी जलु के जल मे पडुरे, पिण नहु लोपु लीक ||४||पदा एक वार आगै पाछै सही रे, इण भव मरवो होय । तो स्युकलं हिव जीव नै रे, एक भव मे हुवै दोय ॥शापद। जउ उदयागत आवइ आपणइ, पूरव कृत पुण्य पाप । विण भोगविया ते नवि छटियइ, करता कोड़ि कलाप ॥५०॥ किण जाण्यो थो एहवा कष्ट में रे, पड़सी रतन' पडूर । पिण एहवी भावी वणी रे, जेहवो कर्म अंकूर ॥७॥१०॥ सिंहल देश किहां दरिया परै रे, किहा मेवाड़ सुदेश । किहां सिंघल वीरारी वइंनडी रे, किहा महाराण नरेश Ir कोइक पूरव भव संबंधसुरे, आइ मिल्यो संजोग । भवितव्यता रइ जोग मिलइ इस्यो रे, वणियो एम वियोग ।।६।। पिण मन माहि हिवै जाणु अछुरे, कोइक पुण्य प्रमाण । बधव जी तुम सुभेष्टो हुओ रे, तो भय भागो सुलतान ।।१०।। मात पिता थे बंधव माहरा रे, हिवे तुम सगली लाज । सील प्रभाव मुम आसीस थी रे, जैत करो महाराज ॥१शापना अविचल नाम नव खंडे करी रे, भाजो अरि भडवाय । राखो पदमणि रतन' छुडाइ ने रे, थंभो गढ जसवाय ॥१२॥
१, २, राण ३ थाउ।