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पद्मिनी चरित्र चौपई ]
[६६ गोरा के साथ वादल के घर जाना वेऊ चाली आविया, वादल ने दरवारो रे। विनय करी ने वादले रे, आय कीध जुहारो रे ॥१७॥ग०|| पूछै कारिज पय नमी, कहो आया किण काजो रे । 'लालचंद' कहै' तस अखीइं, जस' मुख हुवै लाजो रे॥१८॥ग॥
दूहा गोरो कहै वादल सुणो, पदमणि साटै राय। छूडावीज्य एहवो, सुभटे कीयो उपाय ॥१॥ ते ऊपरि ए पदमणी, आई आपा पासि । स्युं करिवो सूधो मतो, वेघो कहो विमासि ॥२॥ सरम छोड़ी बैठा सुभट, आपे अछा उदासि । छोड़ी दीधो रायनो, गाम गोठि तजि ग्रास ॥३॥ लाजत छै नीची दियां, कुल खत्री धर्म सार । डीले दोय आपां सुभट, आलिम कटक अपार ॥४॥ किण विधि जीपीजइ किलो, ते भाखो भत्रीज । तिणए आवी तुम कन, पदमणि आपेहीज ॥३॥ ढाल (१०) नाहलिया न जाए गोरी रे वणहटै रे, ए देशी । राग-मारू पदमणि बोले वीरा वादलारे, सुणि मोरी अरदास । हुँ सरणागति आवी ताहर, साभलि तुझ जसवास ॥१॥पद०॥ हिव आधार छै एक तुम तणो रे, दोहरी वेला दाखि ।
सगति न हवे तो सीख द्यो, राखि सके तो राखि ॥२॥पद०॥ - १ तसु दाखीय २ जेहनइ ३ जे ४ लार ५ एकिलो ६ तिणले आयो तुम्ह लगि