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________________ ६८] [ पद्मिनी चरित्र चौपई सुभटें सीख दीधी सहु रे, खोई खत्रीवट लीको रे । असुरा घरि अमनें मोकले, कुमतीया लाज कितीको रे ॥७॥गा सीख द्यो हिव मुझ नै, आई छु इण कामो रे । ग्यान किस मुझ ने गिणे, कहै गोरा इण गामो रे ॥८॥०॥ खरच न खावां केहनो, कोई न पूछ कामो रे। तोपिण हिव चिंता तजो, आया जो इण ठामो रे ।।।।ग! अलगो भय असुरा तणो, हओ हिव मात निचितो रे। जाण्या सुभट वड़ा जिके, जिण दीधो-एह कुमतो रे ॥१०॥ग०|| वर मरवो इण वात थी, राणी देई राओ रे। छूटावीज्ये ,एहवो, सुभट न खेल डाओ रे ॥११॥ग०॥ करसी ते जीवी किसु, थाप्यो जिण ए थापो रे। कर जोड़ी राणी कहै, इण घरि एह अलापो रे ॥१२॥ ग॥ खोयो राय गढ खोवसी, इण वुद्धि सारू एहो रे। तिण तुझ हुं सरणो तकी, आई छ इण गेहो रे ॥१३॥ ग०, सिंह तणो स्यो स्यालीइ, कारिज करे समारो रे। गज पाखर गजस्युचलै, भीत निवाहै भारो रे ॥१४॥ग०॥ ए कारिज तुम स्यु हुवै, तू हिज बीडो झालि रे। सुभट बड़ो तुमाहरोरे, दोहरी वेला में ढालि रे ॥१शाग०॥ सुणि माता सुभटा वड़ो, गाजण थो मुझ भ्रातो रे । तस सुत वादल तेहने, पिण पूछीजे वातो रे ॥१६॥ग०॥ १ देह २ इतरइ ३ हिव ।
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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