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पद्मिनी चरित्र चौपई] जेहवे ते जाता हुता, अवर ज सेवा कर्म । तेहवें गढ रोहो हुवउ, रहिया खत्रीवट धर्म ॥३॥ गाठि खरच' खाता रहै, अभिमानी वड़ वीर । गढ रोहो किम नीसरै, पर दुख काटण धीर ॥४॥ एहवा ने पूछ नहीं, न्याय हुवे तो केम। पंडित नै आदर नहीं, मूरख सुवहु प्रेम ॥क्षा
___ ढाल (e) एक लहरीले गोरिलारे-ए देशी गढ नी लाज वहै घणीरे, गोरो वादल राउरे । ते सुणीया मोटा' गुणी, बुद्धिवंत सूर साहाउरे ॥१॥
गढ नी लाज वहै रे । आ॥ चित सुएहवो चिंत रे, चालि चढी चकडोलो रे। साथ सहेली ने झूलरै रे, ते गई गोरा नी पोलो रे ॥१॥ गा बैठो दीठो वारणे, गोरोजी गात गयदो रे। हरषित मनि पदमणी हु1, ए दूर करेसी दंदो रे ॥३॥ ग०॥ सामो धायो उलही, प्रणमें पदमणी पायो रे। मया करी मो ऊपरै रे, गोरिल बोले माय रे ॥४ाग०॥ आज दिवस धन्य माहरो रे, आवी आलसुआ में गंगो रे। पवित्र थयो घर आगणो, अधिक पवित्र मुझ अंगो रे ॥शाग०॥ काज कहो कुण आविया, माताजी मुझ आवासो रे। तब वलती पदमणि कहै, अवधारो अरदासो रे ॥६॥ ग०॥
१ गरथ २ कातर ३ पदमिणी ।
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