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________________ ___ ६६] [पद्मिनी चरित्र चौपई। पद्मिनी का स्वावलम्बन किण सरणे जाऊं रे, दीन भाष सुणाउं रे, सतहीण न थाउं मन कीज्ये खरो रे।। २७ ।। ए सुभट कुजीहा रे, सी कीजइ ईहा रे मुख असुर न पेखरं जीहा खण्डि मरउं रे ॥२८॥ समझी मन सेती रे, खत्री धर्म खेती रे, मन' धीर धरेती जिम एती सती रे ॥ २६ ॥ सीता ने कुती रे, द्रोपदि बहु भंती रे, लही सकट न सील चूकी रती रे ॥३०॥ सत सील प्रभावइ रे, दुख नइ मउनावइ रे, वहु आणंद बधावइ, दिन रयणी गरवइ रे।।३।। हिवे सील प्रभावें रे, सुणयो मन भाव रे, __ मुनि 'लालचन्द' गाव पावे सुख ध्रुवे रे ।। ३२ ।। वीर गोरा के घर पद्मिनी गमन गोरो रावत तिण गढे, वाढल तस भत्रीज । - वल पूरा सूरा सुभट, खत्री धर्म (राख) तेहीज ||१|| तजी सेवा रावल” तणी, किणही कुवोल विशेष । चाकर गयर थका रहें, गास गोठ तजि रेख ।।२।। --- १ बहु २ कष्ट न चूकउ 'सन एका रती रे ३ सत ४ बिहुँ, ५ श्री राम नी।
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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