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पद्मिनी चरित्र चौपई ]
[६१ आलिम कहै ऊभा रहो, करयो मया सढीव । रावल कहै आगे चलो, ज्यु सुख पावे जीव ।।६।। ईम कहि गढ बारणे,' संचरीयो महाराव । खुरसाणी खोटे मनै, देखें दाव उपाव | ___ राघव चेतन की कुमंत्रणा
ढाल (७) राग-मारु १ पंथी एक संदेसडो, २ कपूर हुवै अति ऊजलोरे एदेसी व्यास कह नहिं एहवो रे, औसर लहस्ये ओर । कहस्यो पछै न कह्यो किणे, थे मति चुको इन ठोर ।।१।। साहिवजीथे मानल्यो मारी बात, वलि एहवी न पायवी घात । सुनि सुलतान मन चिंतवै रे, साच कहै छै एह । अवसर चूक गमाडियो, मोल न लहीइ तेर ।।२।। सा० । हुकम कीयो हल्ला करी रे, विचल्यो साह वचन्न । जूझारे जाइ झालियो रे, कपटइ राण रतन्न ।।३।। सागा,
राणा की गिरफ्तारी हम महिमानी तुम करी रे, अव तुम हम मेहमान । पेशकशी पदमणी कीया, हिवें छूटेवो राजान ।।४||सा०॥ साथे सुभट हुँता तिके रे, तेह हुआ मति मंद। हिकमति काइ न केलवी, राय पड़यो बहु फद ।।शासाला वेडी घाली वेसाणीयो रे, राह ग्रह्यो जिम चंद । जोरो कोई चालीयो, सिंह पड़यो जिम फंद सा०॥
१ वाहिरै २ हिम्मति