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[ पद्मिनी चरित्र चौपई
जो रावल जिम तिम करी, पकड़ीजे हे तो पहुंचे मन' हूँस कि। आलोची मन आपण, धीरज धरि हे मन पूगै हूंस' कि ।।सु॥१४॥ केसरि चन्दण कुमकुमा, छंटीज्ये हे कीज्ये रंग रोल कि । सु। वारू दीध पहिरावणी,
हय गय रथ हे आभरण अनेक कि । सुं० ॥१५॥ भगति जुगति राणइ भली, संतोज्या हे सकल राय राण कि। सुक लालचंद कहि साभलउ,
अस बोलइ हे सइंमुखि सुलतान कि सु॥१६॥
वाह झालि सुलतान कहें, राय सुणो महाराउ । महमानी तुम बहुत की, अब हम गढ़ दिखलाउ ॥१॥ रतनसेन साथे हुओ, विषमी विषमी ठोड़। देखायो सुलतान ने, फिरि-फिरि गढ चीत्तोड़ ॥२॥ विषम घाट बाको घणो, देख्या छूट गरब । खोट नहीं किण वात नो, साज सातरो सरव ||३|| कीन्ये कोडि कलप्पना, तोहि न आवै हाथ । इम विचारी आपणे, इम जपे दिल्ली नाथ ॥४॥ काम काज हम सु कहो, बंधव जीवन प्राण । बहु भगति तुम हम करी, अब सीख' मागे सुलताण || एम कही वगसं वसत, आलम वारम्वार । कनक रतन माणक जडित, आभ्रण शस्त्र अपार ||६||
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१ प्राणकि २ जीमिया धान ३ विदा देहु महाराण