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________________ पद्मिनी चरित्र चौपई ] [ ५६ इण' अवसरि पदमणि कहै, सहीयां देखा हे केहवो पतिसाहि कि । सु। जाली में मुख घाली नै, गयगमणी हे देखै मन उच्छाह कि ॥७॥ सुना ते देखी व्यासैं तिसें तब बोले हे देखो सुलतान कि सु। रतन जडित जाली विचइ, बइठी वाला हे गुणवंत सुजान कि । सु० ॥८॥ तुरत देखी ने पदमणी, बोलइ आलम हे नागकुमारिकि । सू। भद्र कि नाथा रुकमणी, किन्नर किन होय अपछर नारि कि राह| सु०॥ वाह-वाह वे पदमणि ऐसी नहीं हे इन्द्र घरि इन्द्राणि कि । सुं० या कइ अंगूठा समि नहीं, नारी हे जगि मांहि सुजाण कि । सु११०॥ देखी आलिम अचरिच थयो, नहिं एहवी नारि संसारिकि । सु० ॥११॥ किती बात याकी कहों, मुम मन हे मृग पाड्यो प्रेम पास कि । सु०॥ मुरछित हो धरणी पडयों, वलि मुके हे मोटा नीसास कि सु० ॥१२॥ व्यास कहै सुणि साहिवा, स्यं खोवे हे फोकट निज साखि कि। और बुद्धि इक अटकला, तव लगे हे मन धीरज देउ राखि कि । सु।।३।। १ तिण २ कोई बुधि - -
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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