SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ पद्मिनी चरित्र चौपई ते आवी न रहइ छिपी, जे मोहइ हे त्रिभुवन जन मन्न कि । सुं० खिण विरहउ न खमि सकइ, जतने करि राखइ राणउ रतन्न कि । सु०३r (राणो) रात दिवस पासे रहै, धन्य देखे हे एहनो' आकार कि। साहि कहै सुणि व्यास जी, किण विधसु हे देखै दीदार कि । सु० ॥४॥ व्यास कहै सुणि साहिवा' अति ऊँचो हे पदमणि आवास कि। मुजरो कोई पामे नहिं, रावल ही हे लहै भोगविलास कि । सु० ॥५॥ कवित्त लाख दस लहै पलिंग सोडि तीस लख सुणीजें गाल मसरया सहस सहस दोय गिंदआ भणीनें ॥ तस उपरि मसोड़ि मोल दह लखे लीधी। अगर कुसम पटकूल सेम कुकम पुट दीधी।। अलावदी सुलतान सुणि विरह व्यथा खिण नवी खमैं । पदमणि नारि सिणगारि करि रतनसेन सेझा रमैं ॥१२॥ ढाल तेहीजजे देखइ पदमिणि भणी, ते गहिलो हे होवे गुणवंत कि । सुं० मान गलइ बहुनारि ना, इम बातां हे वे करि बुधवंत कि । सु०६. १ ए रति रूप उदार कि २ करि हे इम होइ० ३ सामिजी ४ दोपड़ि
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy