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[पद्मिनी चरित्र चौपाई
गढ ऊपरि वार्ता गई रे, हलहलियो हिंदुआंन । गढ़पति माल्यो आपणो जी, कीज्ये केहोपान ॥णासाला गढनी पोलि जड़ाइ नइरे, मिल्यो कटक गढ माहि। लोक सहु कहै राय जी, मुरिख अकलि सुनाह साना काई कीयो कपटी तणों रे, असुर तगो वीसास । राय ग्रह्यो हिव पदमणी ने, गढनो करसी ग्रास सा०| आय वैठो सुभटा विच रे, वीरभाण बड़ वीर । आलोचे मिल एकठा जी, सूर सुभट रिणधीर ॥२०॥साका एक कई गढ मे थका रे, सबलो करो सग्राम । एक कहै रूडो हुवै रे, राति (दिवस) वाहें काम ||१शासागा दाणो न मिले जूझता जी, संकट माहिं सामि । एक कहै नायक विना जी, न रहे जूझया मामि ||१२||सागा
हतं ज्ञानं क्रियाहीनं, अज्ञानं च हतं नरं । हतं निर्नायकं सैन्यं, अभारि स्त्रियो हतं ॥१॥ सबला सं जोरो कीया रे, कारिज न सर कोय। कहें एक मरवो अछे जी, ज्यु भाव त्यू होय ॥१३॥सा०॥ मूआ गरज न का सरै जी, छल विण न सरै काज । 'लालचन्द' छल बल कीया जी, अविचल पामै राज ॥१४॥
चितौड़ दुर्ग में शाही दूत द्वारा पद्मिनी की मांग .
मिलि मिलि मोटा मत्रवी, सूर सुभट रजपूत । इण विधि आलोचे तिस, आयो आलिम दूत ॥१॥