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[पद्मिनी चरित्र चौपई
कोतिग देखी गढ तणो, हुं जास्युनिज ठाम । वली रावल जी इम कहै सुणि दिलीपति साम ॥१॥
ढाल (8)
१ तिण अवसर वाजै तिहा रे ढंढेरा नो ढोल ए देसी
२ मेवाड़ी दरजणी री ढाल एतला आण्या सा भणी रे, तीस सहस असवार। विण कारण वानर जिसा रे, माता मुगल्ल जे इणवार रे ॥१॥ धुरत दिल खोटा रे, काई रे तु साहिब मोटा, वाचा चको रे, आलिम वाची चूको । आकणी । चूक कियो तो चूरस्यु रे, सेक्या पापड़ जेम रे। पीसी न्हां पलक में रे, आटा में सिंधव जेम रे ॥२॥धु।' हलकारैः हलकां करी रे, ऊठ सुभष्ट अपारी सार मुखें तिल तिल कर रे, एकेको एक हजार ॥३॥धु०॥ गढगंजन सुभटां भणी रे, तनक हुकम है मुझ । तो चिड़ीया जिम पाकड़े रे, ए तीस सहस दल तुम रे ॥४धु०॥ आलिमपति इम चिंतवै रे, राय सुणों अरदास निज घरि आया पाहुणा रे, कहो किम कीजे उदास रे ॥५ धु०॥ सगते केम सत्ता करो रे, काय पचारो पाण। । थोड़ा ही होवे घणा रे, लीज्य मेलि महमान रे॥६॥५०॥ १ वदइ २ एतइ ३ हलकारनां हेक नइ रे ४ चिडियाँ री परि।
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