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पद्मिनी चरित्र चौपई]
सुलतान का चित्तौड़ प्रवेश पोलि उघाड़ी गढ तणी, सरल सभावै राणो रे । मुंक्या तेडण' मंत्रवी, वेघ' पधारो सुलतानो रे ॥१४॥ तीस सहस लोह लुवीया, ले पैठो सुलतानो रे। समचा सुते संचरथा, जाण पडि नहिं राणो रे ॥१।। देखवा कोतिक मिल्या तिहा, नरनारी जन वृदो रे। पिण किणहि जाण्यो नहिं, दिलीपति रो छंदो रे ॥१६॥
सुप्त गुप्तस्य दम्भस्य, ब्रह्माप्यंतं न गच्छति ।
कौलिको विष्णु रूपेण, राजकन्या निसेवते ॥२॥ कपट कोई नवी लिखी सके, जो करी जाणे कोई रे । 'लालचंद मुनीवर कहै, पिण भावी हुई सो होई रे॥१७॥
आया दीठा सामठा, आलिम सु असवार । खुणस्यो मन मांहि खरो, रावल जी तिण वार ||१|| बूलाया आया तुरत, सम कीयाह सुभट । दल बादल आई मिल्या, हिंदू मुगलां थट ॥२॥ दिलीपति ढीलो हुवो, पहुंचे कोई न पाण । अचरिज' आसंगी न सके, बोले एहवी वाण ॥३।। काहे कु मेलो कटक, खोटो म करो खेद । हुँ लड़वा आव्यो नहीं, नहि छै को छल भेद ||४||
१ मोटा २ पाउ धारठ ३ सब ४ सयनी किये ५न को उपाय ६ आसग सके न कोइ किण, आलम खेलइ दाप ।