________________
५०]
[पद्मिनी चरित्र चौपई । मैं अपणा कृत कर्म सु, असुर कुले अवतारो रे । पूरब पुण्य प्रमाण सु, तू हिंदूपति सारो रे ॥शाता। जीव एक काया जूई, तू पूरव भव मुझ भ्रातो रे । हम तुम सू मेलो हुओ, बैठि करई दोय बातो रे ॥६॥ता०॥ हरख बहुत हमकु अछ, भोजन पदमणी हाथो रे । दीदार पदमणी देखिय, ओरण चाहै आथो रे॥णाता॥ पाछै दिल्ली कुं चलें, हम तुम होय सनेहो रे। तब रावल' तिणसु कहै, जो नवि जोर करेहो रे ||ाताo|| तो नचिंत पावधारिइं, लसकर थोड़ो लेइ रे। आरोगो आणंद सुं, हम घर प्रीति धरेइ रे हाता॥ साहि भणी वाता सहु, जाय कहै परधानो रे। सुस सपति' निज वाह सु, झूठे मनि सुलतानो रे ॥१०॥ इलोक-मुखं पद्मदलाकारं, वाचाचंदन शीतलं ।
हृदयं कर्तरी तुल्यं, त्रिविधं धूर्त लक्षणम् ॥१॥ राघव मंत्र' उपाईयो, रावल झालण कालो रे। छेतरवा छल माडियो, साहि कीयो बहु साजो रे ॥१शाता०॥ घरभेदू राघव मिल्यो, सामिधरम दियो छेहो रे। घरभेदू थी घर रहै, खोवै पणि घर तेहो रे ॥१२॥ता घर भेदइ लंका गई रेहा, रावण खोयो राज ।सु० घररउ उंदिर दोहिलउरेहा, सुगम अवर मृगराज ॥१३॥
१ पीछे दिल्ली कुच ढेरहों २ राणौ ३ सबदि ४ द्यइ ५ कीधठ मत्रणउ, राणा।