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[पद्मिनी चरित्र चौपई
झू बीया लूबीया मीर गढ ऊपरा',
गोफणा फण-फणा वह गोला । गडा गड़ि गिर तणा गडागरि गिर पड़े,
___ चडाचडि उछल मुगढल्ल रहो ला ।।१६।। जालमी आलमी जोध मिलि झूझीया,
धरहरै धरा धमचक धूनी । सरस सग्राम री ढाल ए पनरमी,
सुगुरुराज ग्यान 'लालचद' वाजी ॥१७॥च०।।
एकण दिशि रावल अनम्म, आलिमपति दिशि एक । भभकारे' बेहुं सुभट, राखण रजवट टेक ॥१॥ खाणो दाणो पूरव, रावल रण रंढाल । भारथ मे योद्धा भिड़े, रिणयोद्धा जिम काल ||२|| आलिम चिंता अति घणी, पदमणि पेखण प्रेम। गढ हाथै आवें नहीं, कहो हवै कीजै केम ॥३॥ दिल्लीपति दाखै इसौ, सुभटा ने समझाय । सहु तुमे हिव सामठा, जुड़ो तुरंगा जाय ॥४॥ नेडा होय गढ सुनिपष्ट, खोटो खानि सुरंग। बुरजा तणा पुरजां करो, देशी धड़ा दुरंग ॥५।।
१ कागुरे २ भूधल होला ३ वांची ४ रणउ वपुकारे ५ मड़ : रिम ७ जडठ दुरगे