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पद्मिनी चरित्र चौपई]
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कोट करि चोट उपाडि अलगो करो.
बुरज गुरजां करी करो हिवें भूक । ढाहि ढम ढेर गढ घेरि करि पाकडो,
करो हिवें बदि दिन अंध घूक ||११||च०॥ करै मुख रगत युवगत आलिमधणी,
डारि द्यु फूकि थकी गढ चीतोड़। राण सु पदमणी चिडी जिम पाकडू,
कवण हिंदू करें हम तणी होड ॥१२॥च०॥
युद्ध वर्णन होय हुसीयार हथीयार गहि उठीया,
मीर वड वीर रिणधीर रोसइ । सुणो पतिसाहि अल्लाह अब क्या करे,
___ देखि तुम साथरा हाथ मोसें ।।१३।।चा. इम कहि मुगल सिर चुगल जिम मूडीया,
धाय गढ कंगुरे आय लागा। पीठ परि रीठ पाधर' तणी पड पडै,
अडवडै लडथड़े भिडै आगा ॥१४॥च०॥ भड़ा भड़ि भड़ा भड़ि नाल छूट भली,
__कड़ाकड़ि कूट वार्जे कुठारा । तड़ातड़ि तड़ातड़ि सबद गढ ठावता,
बड़ाबडि बाण लागे ऊठारां ॥१५शाच०॥ १ गढ सकल २ पाथर