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[पद्मिनी चरित्र चौपई
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राण कुल भाण सुलतान आयो सुणी,
झटक दे कटक सहु सम कीधो। मुंछ बल घालि बहू रोस भाखे रतन,
हलाहिव साहि नईकरां सीधो च०॥ भला तु आवियो मुझ मन भावीयो,
दूत रजपूत मूकी कहायो। हूं हिजें साहि हुसीयार हिवें जाह मत,
भलां सिंघल थकी भाजि आयो ।॥७॥च०॥ माहरा साथ रा हाथ हिवें देखज्ये,
ढीलिपति रहैं मति हिवै ढीलो । भाजता लाज तुम का ज आवै नहिं,
देखयो साहि मोटो अडीलो ८० कीयो गढ सातरो नाल गोला करी,
माडीया ढीकली अरहट्ट यंत्रं । धान पाणी घणा वसत संचा किया,
मिली' बुद्धिवंत करे बहु मंत्रं हाचा तुरत रा तीर जिम वैंण रावल तणा,
सुणत परमाण पतिसाहि रूठो। भभकति आग में जाणि घृत भेलीयो,
___ साहि कहे हलां करि सुभष्ट रूठो ॥१०॥च०॥
१ महा मंत्रवी २ ततारा ३ राणा ४ सुलतान