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तृतीय खण्ड मंगलाचरण
दूहा
मात पिता बधव हितु, गुरु सम अवर न कोय । तिण हेतइं गुरु प्रणमतां, मनवंछित फल होय ॥१॥ तिणकु राग करी नम्, इष्ट देवता आप। खड कहुं अब तीसरो, सुणतां टलै संताप ॥२॥
पद्मिनी की पुनर्गवेषणा अणख' बोल बीवी तणा, सुणि के आलिम साहि। धमधमीयो कोप्यो घणो, अति अमरस मन माहि ।।३।। ततखिण व्यास बुलाइ ने, इम पूछे सुलतान । सिंहलद्वीप विना अवर, पदमणि आहीठाण ।।४।। चावो गढ चीतोड़ छै, पहोवी माहि प्रधान । रतनसेन रावल' जिहा, राजें अमली माण ।। ५॥ शेपनाग सिरमणी जिसी, तस घरि पदमणि नारि । लेई न सक्क कोइ तिण, किम कहिई अविचार ।। ६ ॥ एवड़ो सिंहलद्वीप नो, फोकट कीध प्रयास । गड चीतोड़ किसो गजो, साहि कहै सुणि व्यास ।। ७॥
१ नाजुक २ राणउ तिहा।