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पद्मिनी चरित्र चौपाई ]
मंत्रीसर श्रीहंसराज रे, वड़ दातारा सिरताज रे। पुण्यवंत महा परवीण रे, गुणरागी नइ धर्म लीण ॥ ८॥ समरथ सगलइ ही कामइ रे, तास भ्रात डुगरसी नामइ रे। भागचंद बड़उ भागवत रे, मन मोटइ लखमी कात ।।६।। दीपक सम राजदुवारइ रे, कुल आभ्रण सोभा धारइ रे। तसु आग्रहि कीधउ एह, खंड बीजउ संपूरण तेह ।। १० ।। 'पाठक श्री ज्ञानसमुद रे, गणि ज्ञानराज मुनीचंद रे। गुरुराज तणे सुपसाया रे, मुनिलब्धोदय गुण गाया रे ।। ११ ।।
॥इति द्वितीय खण्ड सम्पूर्णम् ॥ इति श्रीपद्मिनीचरित्रे ढाल भापाबंधे उपाध्याय श्री ज्ञान समुद्र गणि गजेन्द्राणा शिष्य मुख्य विद्वद्राज श्रीज्ञानराज वाचक चराणा शिष्य पं० लब्धिउदय मुनि विरचिते कटारिया गोत्रीय मत्रिराज श्री हंसराज म० श्री भागचंदानुरोधन राणा श्री रतन सिंहलद्वीप गमन श्री पद्मिनी पाणिग्रहणं श्री चित्रकूट दुर्गागमन सम्बन्ध प्रकाशो नाम द्वितीय खड ॥ राघव चेतन दिल्लीगमन साहि वारिधि यावत् गमनागमन सम्बन्ध
प्रकाशनो नाम द्वितीय खड २ ( बड़ौदा प्रति)