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________________ ४० ] [पद्मिनी चरित्र चौपई सिंघल सों कीधो सनेहो रे, मान देई मूक्या तेहो रे । समारी सहू राघव वातो रे, जिम तिम वणी आवै धातो रे ।।६।। दूहा जेहनइ घटि बहु वुद्धि हुवइ, तेसारइ सहु काम । भंजइ गंजइ वल घड़इ, वलि आणइ निज ठाम ।। १ ।। ढाल (७) यतनी-मनसा जे आणी एह अलिसपति कूच करायो रे, वेघो दिल्ली गढ आयो रे । घरि घरि गूठी ऊछलीयाँ रे, बहु मंगल धुनी रंग रलीयाँ ॥१॥ बैठो तखत पतिसाहो रे, गढ सकल थयो उछाहो रे। मिलि मिलि नर नारी भाखै रे, यो' आयो पदमणी पाखें ।।२।। आलिमपति महेला आया रे, भिंतरि हथियार धराया रे। सेवक घरि' पाछो जावै रे, तव बड़ी बीबी वुलावै ।। ३।। तुम साहिव पदमणी परणी रे, ते दिखलावो हम तुरणी रे। देखा दीदार एकवार रे, केसी हुवे पदमणी नारि ॥४॥ जसु घरि नहिं पदमणि नारी रे, केसो कहीइं घर बार रे । केंसी तेरी पतिसाही रे, पदमणी नाहि एकाही ॥५॥ विण पदमणी खाना खावै रे, इम वार वार संतावै रे। विलखो होय खोजी आवै रे, आलिम नैं बहुत भखावै ॥६॥ गच्छ मोटो खरतर गायो, महावीर पाट चल आयो रे। सूरीश्वर श्रीजिनरंग रे, तसुशासन श्रावक चंग रे ।।७।। - १ किम २ धरि ३ आवइ ४ वडकण बीवी बतलावइ ५ खाली नावड
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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