SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पद्मिनी चरित्र चौपई] [३६ अणजाण्या नर सीखवो, ए सिंघल मूक्यो दंड। हुं तुम्ह नी पग खेह छ, अव तु आलिम छंड ॥४॥ नाक नमण इण परि करो, और न कोई उपाय । अहंकार इम राखज्यो, जिम आलिम फिर जाय ॥शा डाल (६)-कोई पूछो वांभणा जोसी रे ए देशी । अथवा यत्तनी इम व्यास वचन अवधारी रे, हरखी तव सेना सारी रे। सहू सच कीयो तिण रातें रे, दंड ल्याया ते परभात रे ।। १ ।। दिन ऊग्या आलिम जागै रे, देख्या प्रवहण मन रागें रे। कहो क्या वे आवत सूझ रे, अइंसउ सेवक कुबूझ रे ॥ २ ॥ तव व्यास कहै सुणि सामी रे, सही तोहै एह सलामी रे। सिंघल राजा तुम मुकी रे, सवली आग्या प्रभुजी की रे ॥ ३ ॥ सोना कलसे अति सौहै रे, चमकत चूनी मन मोहे रे । फरहरें नेजा धजा फावइ रे, बहु नेड़ा प्रवहण आवै रे ॥४॥ देखत आलिम सुख पावै रे, वाहण दरीया तटि आवे रे सुलतान चरण धाइ लागें रे, सब पेसकसी धरी आगे रे ।।५।। सिंघल तुम पग नी खेहा रे, सेवक सुराखो सनेहा रे । बदे कुसाहि निवाजै रे, ए चूनो तुम पान काजै रे ।। ६ ।। तुम दिलीसर जगदीसो रे, नमठेह सुं केही रीसा रे। इम विनय वचन सुणीइजे रे, सिरपाव सिंघल ने भेजे रे ।। ७ ।। पहरायो ते परधानो रे, दीधो तेहनै बहु मानो रे। सिंघल मक्यो ते लीधो रे, सुभटा ने बांटे दीधो रे।।८।। १ कइ २ मानि ३ मतउजइ
SR No.010707
Book TitlePadmini Charitra Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1953
Total Pages297
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy