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__ पद्मिनी चरित्र चौपई ]
[ ३५ सिंहलदीप अछै दक्षिण दिसइजी, आडो समुद्र अथाग! व्यास कहै पद्मिणी ठावी तिहाजी, पिण महा दुर्घट माग ॥९॥ साहि कहै मुम आगे व्यासजी, दरीया है कुण भात ! मुझ देखे सुरनर सहुको डरैरे. सोखु सायर सात ॥१०॥ सु०॥ तुरत चढ़ाई सिंहलदीप ने रे, कीधी दिल्लीनाथ । धुधुंधु नीसाण घरे भलाजी, शूर सुभट ले साथ ।।११।।सुगा मोले सहस मेंगल मदभरता भला रे, जाणे घन गजति । लाख सतावीस हवर हींसतारे. चचल गति चालंति ।।१२॥ सु.॥ च्यार चक राजन संसय पडया रे, धर हर धूजेरे सेस । रज ऊड़ीरे गयणे रवि ढाकियोरे, सक्यो मनहि सुरेसा॥१३शासंगा इलगार करि करी उलघी मही रे, आया दरीया तीर । रिण रंढाला मरदाना वली रे, साथे बहु सूर नै वीर।।१४||सु॥ देख्यो दरियो भरियो जल घणेजी, तब वोले नरनाथ । वारिधि पूरो हल वीहला हुइरे, मु छा घाले हाथ ।।१।। सु०॥ दल बादल डेरा ऊभा किग से, ऊतरीयो सुलतान । सिंहलदेश दुहाई फेरि के रे, पकडो सिंघल राण ।।१६।। सुला 'लालचंद' कहै साहि अलावदी रे, बोलाया बड़ वीर । सझ हई' सिंहलद्वीप ने ते, जे मरदाना वीर ॥१७॥ सुना
दुहा हुकम लही आया वही, जिहा सायर गम्भीर । - जल सु जोर न कोई चलें. चूडण लागा मीर ॥१॥
१ वड़ा, २ करि।
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