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[ पद्मिनी चरित्र चौपई अन्तः पुर को बेगमों में पद्मिनी गवेपणा
ढाल (8) रागमारू, वाल्हाते विदेशी लागइ वालही रे' ए गीतनी देशीइण परि पद्मिणी रा गुण साभली रे, हरख्यो मन सुलतान । हम महेलैं पद्मणी केते अछरे. परखो व्यास सुजाण ||२|| इणना सुन्दर सहेली पद्मणी मन वसी रे || आकणी ।। व्यास कहै आलिम साहिव सुणो रे, किम निरखं तुम नारि ।। निरख्या विगर न जाणु पद्मणी रे, कीजे कवण विचार।२।। सु०॥ तव दिल्लीपति महेल करावियो रे, मणिमय एक अनूप । व्यास बुलाय कहे पद्मणी रे, निरभया देखी स रूप ।।३।। सु०॥ सकल नारि प्रतिबिंब निरखियो रे, बैठी मणगृह माहि । देखी हरम हस्तनी चित्रणी रे, यामे पद्मणी नाहि ॥४॥ सु०॥ व्यास कहै सुर नर मन मोहनी रे, अद्भुत रूप अनेक । है चित्तहरणी तुरणी महल में रे, पिण नहीं पद्मणी एका||सुना
पद्मिणो के लिए सिंहलद्वीप पर चढ़ाई एह वात सुणी आलिमपति कहै रे, क्या मेरा अवतार' । कैसी पतिसाही विण पद्मणी रे, अउरति अउर असार ।।६।।सुंगा (विण) पद्मणी सेजे पोढुं नहीं रे, हेजे न करूं रे सग। पद्मणी ऊपर कीजे उवारणा रे, राज रमणी सवंग ॥७॥ सु०॥ मनडो लागो मारु भुरट ज्युरे, पद्मणी परणवा चाह । व्यास वतावो चावी पद्मणी रे, इम बोले पतिसाह ॥८॥ सु l
१ वालउ रे सवायउ वैर हु माहरौ २ जमवार ।