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[पद्मिनी चरित्र चौपई
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सायर ऊपरि हठ' कीयो, आलिम साहि अपार । प्रवहण नवा घडावि ने, चोठ्यारे बहु जूझार ||२|| साहि कहै सुभटा भणी, आ वेला छ आज । लड़ी भड़ी गढ भेलिज्यो, पकड़ज्यो सिंघलराय ॥३॥ लाख लाख मोजा दीइं, चलीइ वकारें स्वामि । कहें तदि पाछो कुण रहै, सूर सुभट रे नाम ||४|| वैठा ते दरीया विचे, जेहवे आघो जाय । आय पड़या भमरया बिचइ, बाजै सबलो वाय ।।५।।
ढाल (५)राग-मल्हार सहर भलो पिण साकडो रे नगर मलो पण दूर, ए देशी। तेहवे दरीयो ऊछल्यो रे, भागी वेडी भटाक मेरे साजना। फिरी आदइ आलिम भणी रे, बूडें तेह' कटक । मेरे साजना ॥१॥ जल सुजोर न को चलै रे, सुभट रह्या जल माहि मेरे० पदमणी परही जाणि यो रे, छोडो केडो साहि मेरे० ॥२॥ आलिमपति इणि परि कहै रे, मैं नवि छोड़ केडि मेरे० मो आगे दरीयो रहे रे, अव नाखुगो उथेडि मेरे० ॥३॥ वरस रहुँ पदमणी वरु रे, पकडुसिंघलराय मेरे० । वीजा सुभट वुलाइये रे, मुआ ति गइअ वलाय मेरे० ॥४॥ सुभट मन मे संकीया रे, फोकट दरीया माहि मेरे० काम बिना किम दीजिई, रे, साहि विचारत नाहि मेरे० ॥१॥ १ कोपियो, २ चाल्या, ३ लहइ, ४ वलि वपुकारे ।