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ज्ञानानन्दरत्नाकर। वमु जिननाध | जिनको सुर नर वहां पूनें इमभी यहां ना पाय || चन्द्र बाहु श्रीभुजंग ईश्वर देग प्रभू वीर सेनजी न, य । यहाभ अरु देवयश भाजित चीय पद जोड़ों हाथ ॥ जिनकी प्रभा देस रवि शशि त रा ननत्र गृह लामा है। तिनका दर्शन तथा पर्ण किये अब भाजन ।। ३ ।। नाई ईप में एक सौ साउ विदेह तिनमें तीर्थंकर बीम । पाठ श्रठ मे एक जिनका राजे किभुवन के ईश ।। कोहि पूर्व मत्र श्रायु श्ना पांच काय त्रय छत्तर शीय । दोनों श्री अमर दोरते चार वत्तिम वत्तीम ॥ नायगम जिन पर जहा जिन यवन व सम गाजत है । तिनमा दर्शन तथा मर्ण किप अष भाजत है ॥
... ॥सिद्धों के स्वरूप में लावनी १६ ॥
मेरा तो मिहबूर वही जो जिलावे त्रैलोक्यानी । जिनके नाम का मन धाते हैं हमेशः योगी यती ॥ टेक ! वर्ण गन्ध रम फर शब्द तम छाया रहिन अचान प्रासन | अन्थि चम मल रहित नहीं पायें कि इंदिय मन । जन्मन मरण जरा गद वर्जित वाया रहित न जिसके ना । अनन्त दर्शन ज्ञान दृग वार्य चतुष्टय भिमके दन ॥ निर्विकार प्रातार साकार पुरुप के चिन्मूर्ति नई। खेदरती । जिसके नाम का ध्यान धाते है हमेशः योगी यनी ॥ त्रिजगन के चर अचर पदार्थ जिसके ज्ञान में झनक्क रहे । यो दर्पणमें पड़े मतिरिव त्यो तिनके ज्ञान कहे ॥ जाति अक्षा ब्रस नाम एक व्यक्ति अपेक्षा ऽनेन लहे । उसी रूट पर गेहूं.माश्वत मेरा मिहना बहे ॥ भवसागरके पार विजन में खोजत हो वही गनी । जिसके नाम का ध्यान धरते है हमेश: योगीयनी ॥ २॥ यतु गुण पूर्ण बहु विधि चूर्ण करके प्राशन लिया अटल । तीन लोक के शीस पर राजत है प्यारा निश्चल ॥ जुधा तृरा निदा भय विता अति आदि सब डाले दल ! तीन लोक वरावर कोई नहीं जिसके अतिवन्न ॥ काम क्रोध मोहादि खलों का जोर न जिसपर चले रती । जिस के नामका ध्यान घरते है हमेशः योगीयनी ॥ ३ ॥ चिदानन्द चिद्रूप राग परमात्म प्रादि अनन्ते नाम । जिनवर जिम कहे मम हृदय वही राजत है