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ज्ञानानन्दरत्नाकर। राम ॥ जैसास शिवथल में वही मा घटमें वास काता बसु याम । निशि दिन इसके ध्यान में लग रखें मन नाथूराम ॥ जो ऐसे मिट्यूब से विरक्त मई निम्हों की युद्धि हनी । जिसके नाम का न धरते हैं हमेशा योगी पती॥
॥मिद्धों के स्वरूप में दूसरी १७॥
पाशक है रा गुल के जिस जग माग नाम जपे | जिसका नाम सन हमेशः परथाइदाकाल कपे॥ टेक॥ हरिहर ब्रह्मा आदि सभी एक काल बन्नी में हार है । वा न कोई जपत जन सब बहुमार पारे ।। ई. द्रादिक र अगर कह चे सो भी भायु गतमारे है । सत्य अमर है वेही जो भादपि पार पधारे है ।। अजर अगर यही परम ब्रह्माद निसका सुश जग गाछिये । जिमका नाप लग हमेशा घर घर ठादा काल कपे ॥ १ ॥ वही बम पगारा उसी श्राशक हमारा मन । जिमी संगति पाय यह अशाव नविन कहाना नन । यो कान लोहा पारस संयोग शद्ध होता के चन त्या या उम योग से पगित बज वेग सज्जन | गुण अनन्त किए वह भला क्या अगुज सेवाकाश नपे । जिप्तका नाम सुन हमेशह पर या उड़ाकाल करे ॥ २॥ कोटि भानु एकत्र होय तो तिसके तेन से लाजत है।
यो कहर का शब्द सुने लाखों जम्बुक माजत है। ये शरीर मुद्दा समान सब उसी के वन से गाना है। एक उसी को अनन्ते नाम गुणों कर छाजत है ।। यदपि दृष्टि ना पड़े तदपि भी तेग बलका नाहि ढरे । जिसका नाम सुन हमे शह थर थर टाला काल रूप ॥ ३ ॥ एमे गुन के दर्शन की पाठ पहर रखना उम्मेद । स्वर्ण जिसका करती दर हाय भव भव के खेद ।। धन्य जन्म
मानन अपना जब से जाना उम गुल का भेद । अपार महिमा जिसकी है नायगा गाते हैं वेद । विमुख रद जो ऐमे गुन से सोही भव पालाप तपे। जिसका नाम सुन हमशह या थर ठाड़ा काल कपे ॥ ४ ॥
॥हितोपदेश में १८॥ जाना जाना के पास तो दिल में खटक लाना होगा । क्यों मना फिरत