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जनानन्दरत्नाकर। भ्रमण किया गाईचार दशाशय धर्म न जाना दशविधि परिग्रह भारव्याचारों गति के चार घरसे न अभीतक पार भया॥२॥ दशपो ग्यारह के विन जाने गुण स्थान ग्यारह चढ़के । फिर गिरा अज्ञानी मोह वशम हे दुःख नाना पढ़के । दश दो वा कच्चे वाह किन जाने मोह भटमे अडके । बारम गुण थाने चढ़ा ना निज विभूति पाता लड़के ॥ पोवारह के भेद विना ना तेरह निधि चारित्र लया चा गति के चार घामे न अभी तक पार भया ।। ३ ।। चौदह जीव सपास चतुर्दश भार्गना नहीं पहिचानी । इस कारण बौदह चढाना गण स्थान भ्रए अधि ठानी ॥ पन्द्रह योग प्रगाढ न जाने तिनबश शासव रतिमानी । सोलह कारण के बिना भाय न कर्म की थिति हानी || सत्रह नेम बिना जाने नहीं पाली मिचिन जीव दया। चारोंगति के चार घासे न अभीतक पार भया । ४ ॥ दोष भठारह रहिन देव अरिहन नहीं हिरदय थाने । इस हेतु अठारह दोप लगरहे नहीं अबना हाने || सम्यक पत्नत्रय पांसे अब सगुरु दया से पहिचाने । बाटो विधि गोटे नाशेि गुण पाठ वरंधर के ध्याने ।। नाथूराम जिन मत पार होने को करो इद्योग नया। चारों गतिके चार घरसे न अभी तक पार भया॥५॥
विहरमान वीसतीर्थकर की लावनी १५॥
विहरपान जिन दाई ट्वीप बीस सदाही राजन हैं । तिनका दर्शन तथा स्पर्ण किये अप भामत है ॥ टेक || जम्बूद्वीप में विदेह बत्ति आठ पाठ में एकशि | दा विराजे रहे पविजीवों को देते उपदेश । सीपंधर युगर्भधर स्वामी बाहु सुना श्रीपरमेश। चार जिनेश्वर कहे तिन के पद पन्दन करों हमेश ।। धन चीया बाल जहां निन देव दंभी वाजत हैं । तिनका दर्शन तथा रमण किये .. अब भाजन है ॥ १ ॥ धातकी खंड द्वीप में विदेश है चौसठ अरु बस जिनराज, थाटमाट में एक नाय कर तिनम रहे विराज || सुजान और स्वयं प्रभु ऋषभाननं अनेन वीर्य महाराज । विशाल मूरी प्रभू बज्र घर चन्द्रानन राखो लाज || छा. लम गण व्यवहार और निश्चय अनन्त गुण छाजन है । तिनका दर्शन नया पर्ण किये अब भाजन हैं ॥ २॥ आंध पुष्कर द्वीप में चौसठ है विदेह अरू